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मुकद्दर से इन्किलाब
आओं हकीक़त को बेनकाब किया जाए
मुआफी मांग कुछ सवाब किया जाए
क्यों दामन से लिपट जाती है रुसवाई ?
चलो मुकद्दर से इन्किलाब किया जाए
कही चराग चराग बुझ न जाए उम्मीदों का
चलो उसे होसलो से आफ़ताब किया जाए
अब रातो को भी नीद आती नही "मीत"
किसी और के नाम अब ख्वाब किया जाए
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