मायुसिओं से घिर गया हूँ
सबकी नज़र से गिर गया हूँ
हिज्र की बेदर्द आंधियो मे
टूटकर शाख से बिखर गया हूँ
माजी के मंजर याद आए
देख आईना सिहर गया हूँ
एक उम्र खुली फजा मे रहा
मुददत बाद "मीत"घर गया हूँ
सबकी नज़र से गिर गया हूँ
हिज्र की बेदर्द आंधियो मे
टूटकर शाख से बिखर गया हूँ
माजी के मंजर याद आए
देख आईना सिहर गया हूँ
एक उम्र खुली फजा मे रहा
मुददत बाद "मीत"घर गया हूँ
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