शुक्रवार, 20 नवंबर 2009


मायुसिओं से घिर गया हूँ

सबकी नज़र से गिर गया हूँ


हिज्र की बेदर्द आंधियो मे

टूटकर शाख से बिखर गया हूँ


माजी के मंजर याद आए

देख आईना सिहर गया हूँ


एक उम्र खुली फजा मे रहा

मुददत बाद "मीत"घर गया हूँ

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