मत पूछ चेहरे पे झुर्रिया कैसे आ जाती है
खेलते कूदते बचपन को फिक्र खा जाती है
उतर जाती है दिन भर की सारी थकन
जब ख्वाब मे माँ मुझे गले लगा जाती है
मत पूछ क्या होती है उस वक्त मेरी हालत
जब टेरिस पे आकर वो मुस्कुरा जाती है
जिसके दम पे रोशन चाहत की महफ़िल
देखो हो के रुसवा बज्म पे वफ़ा जाती है
बात छिडी जब इजहारे मोहोबत की तो
रुखसार सुर्ख क र वो शरमा जाती है
देख कर महफ़िल - ऐ-तन्हाई मे "मीत"
ले यादो का करवा वो मुझे सता जाती है
Sundar
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