जितने कलंदर थे सब सिकंदर हो गए
हम भी दरिया थे देखो समंदर हो गए
अब की बरसतो मे ऐसी धूप बरसी कि
खेत -खलिहान सारे ही बंजर हो गए
यहाँ किसने सियासी खेल खेला कि
खोफ़नाक हर- एक मंजर हो गएये
गम-ए-आशनाई तेरा बहुत शुक्रिया
तेरी इनायत से हम सुखनवर हो गए
शनिवार, 14 नवंबर 2009
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