शनिवार, 21 नवंबर 2009


घर नही पर घर का नक्सा बनाते रहे

हकीकत को अपनी किस्सा बनाते रहे


जमी ही मिली ओढ़ने को उन्हें भी

फलक पे जो अपना आशिया बनाते रहे


कुछ लोग चाँद पे जाके लोट भी आए

हम घर तक जाने का रास्ता बनाते रहे


हकीकत हो या कोई हो ख्वाब "मीत"

फ़िर भी अंजान एक रिश्ता बनाते रहे

4 टिप्‍पणियां:

  1. "जमी ही मिली ओढ़ने को उन्हें भी

    फलक पे जो अपना आशिया बनाते रहे"
    kya baat hai sir realy bahut najuk kavita hai thanx ..

    जवाब देंहटाएं
  2. घर नही पर घर का नक्सा बनाते रहे
    हकीकत को अपनी किस्सा बनाते रहे


    जमी ही मिली ओढ़ने को उन्हें भी
    फलक पे जो अपना आशिया बनाते रहे


    waah.....bahut khoob .....!!

    जवाब देंहटाएं
  3. bahut khoob meet sir...kya likha hai....kya comment dun is par yahin sochti reh gayi......

    जवाब देंहटाएं