धर के भेस फकीर
सपने मेँ जबसे मिले
मुझको दास कबीर।
मेरा तखल्लुस 'मीत' है
लिखूँ गज़ल हर शाम
आदमियत कायम रहे
दूँ सबको पैगाम।
मंजिल पानी हो तुझे
तो रख मन मेँ धीर
निश्चय ही हो जाएगी
ख्वाबोँ की ताबीर।
मन मेँ रखकर हौसला
बढ़ो मुश्किलेँ चीर
योगी बन तू कर्म का
झुक जाए तकदीर।
रंग बिरंगी रोशनी
देती रहे फरेब
गुरु का आईना मिला
दिखलाए सब ऐब।
शोहरत शिखर चढ़ो मगर
सदा रहे यह ध्यान
कुछ पल की हैँ रौनकेँ
मत करना अभिमान।
बेकल नीरज ने दिया
मुझको ऐसा ग्यान
स्वजन विमुख ना होँ कभी
रखना इसका ध्यान।
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