गुरुवार, 6 सितंबर 2012

कोंई भी शै आसमानी अब हमें अच्छी नहीं लगती



किसी   की   हुक्मरानी   अब  हमें अच्छी नहीं लगती
गुलामी   की  कहानी   अब  हमें  अच्छी  नहीं  लगती

हमारा  दिल  बहल जाता है इन कागज के फूलों  से
महकती    रातरानी  अब   हमें   अच्छी  नहीं   लगती

ये  सूरज  चाँद,  तारे  ,कहकशां,  बिजली, धनक, बादल
कोई   शै   आसमानी  अब   हमें  अच्छी नहीं  लगती

बनाकर    दूरियाँ     रखना   हमेशा   छोटे  लोगों    से
अना  ये   खानदानी  अब  हमें  अच्छी  नहीं    लगती

जो दिल में  है  तिरे होठोँ  पे  आ  जाए तो बेहतर है
मुसलसल  बेजुबानी   अब  हमें  अच्छी  नहीं  लगती

                                               रोहित कुमार  "मीत "