शनिवार, 30 अक्तूबर 2010

लग ना जाये कही तुमको अपनी नज़र

सबकी नज़रो से खुद को बचा लीजिये 
एक काला तिल रुख पर लगा लीजिये 

लग ना जाये कही तुमको अपनी नज़र 
आईने से  निगाहें  हटा  लीजिये 

खुद पे भी आपको प्यार आ जायेगा 
ख्वाब आँखों मे कोंई सजा लीजिये 

हंसके कट जायेगा प्यार का रास्ता 
हमसफ़र मुझको अपना बना लीजिये 

बेकरारी मे भी चैन मिल जायेगा 
"मीत" को अपने दिल से लगा लीजिये 

रोहित कुमार "मीत"


रविवार, 24 अक्तूबर 2010

खुशबू आने लगी मिटटी के मकान से

छत पे बैठ कर अपने मकान के 
तारे गिना करता हूँ आसमान के 
घर मे नन्हे-मुन्ने फूल क्या खिले 
खुशबू आने लगी मिटटी के मकान से 


                        रोहित कुमार "मीत"

शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

ठोकरों मे रखते है ताज-ओ-तख़्त

हर-एक चेहरा मेरा  पढ़ा हुआ है 
चेहरे पे चेहरा यहाँ  मढ़ा हुआ है 

सच की कलम थी हाथो मे जिसके 
बन के लाश चोराहे  पे पड़ा हुआ है 

झूठ सच पर इस क़दर भरी कि
कातिल भी नज़र मे पारसा हुआ है 

क्या बात है खैरियत  तो जनाब?
रंग चेहरे का क्यों उड़ा हुआ है ?

ठोकरों मे रखते है  ताज-ओ-तख़्त 
"मीत" इन से क्या कोंई बड़ा हुआ है 

                     रोहित कुमार "मीत"


 

meet dohawali

बन बन मैँ फिरता रहूँ
धर के भेस फकीर
सपने मेँ जबसे मिले
मुझको दास कबीर।

मेरा तखल्लुस 'मीत' है
लिखूँ गज़ल हर शाम
आदमियत कायम रहे
दूँ सबको पैगाम।

मंजिल पानी हो तुझे
तो रख मन मेँ धीर
निश्चय ही हो जाएगी
ख्वाबोँ की ताबीर।

मन मेँ रखकर हौसला
बढ़ो मुश्किलेँ चीर
योगी बन तू कर्म का
झुक जाए तकदीर।

रंग बिरंगी रोशनी
देती रहे फरेब
गुरु का आईना मिला
दिखलाए सब ऐब।

शोहरत शिखर चढ़ो मगर
सदा रहे यह ध्यान
कुछ पल की हैँ रौनकेँ
मत करना अभिमान।

बेकल नीरज ने दिया
मुझको ऐसा ग्यान
स्वजन विमुख ना होँ कभी
रखना इसका ध्यान।