गुरुवार, 6 सितंबर 2012

कोंई भी शै आसमानी अब हमें अच्छी नहीं लगती



किसी   की   हुक्मरानी   अब  हमें अच्छी नहीं लगती
गुलामी   की  कहानी   अब  हमें  अच्छी  नहीं  लगती

हमारा  दिल  बहल जाता है इन कागज के फूलों  से
महकती    रातरानी  अब   हमें   अच्छी  नहीं   लगती

ये  सूरज  चाँद,  तारे  ,कहकशां,  बिजली, धनक, बादल
कोई   शै   आसमानी  अब   हमें  अच्छी नहीं  लगती

बनाकर    दूरियाँ     रखना   हमेशा   छोटे  लोगों    से
अना  ये   खानदानी  अब  हमें  अच्छी  नहीं    लगती

जो दिल में  है  तिरे होठोँ  पे  आ  जाए तो बेहतर है
मुसलसल  बेजुबानी   अब  हमें  अच्छी  नहीं  लगती

                                               रोहित कुमार  "मीत "

गुरुवार, 23 अगस्त 2012

सारे बदन का ख़ून नज़र में उतर गया

आँखों से मिरी कौन सा मंज़र गुजर गया 
सारे बदन का ख़ून नज़र  में   उतर  गया 

मै डिगरियों के साथ भटकता रहा मगर 
आख़िर तो ख़ाली  हाथ ही बस अपने घर गया 

ये जानकर भी दिल को तसल्ली हुई बहुत 
मै हो गया तबाह मगर वो सँवर गया 

हैरत की कोई बात तो इसमें नहीं जनाब 
वो आइना-ए-दिल मिरा टूटा,बिखर गया 

फिर आ गया था याद मुझे हादसा कोई 
फिर "मीत" अपने आप से मै आज डर गया 

रोहित कुमार "मीत"

बुधवार, 27 अप्रैल 2011

हम बेवफा के नाम से मशहूर हो गए

इतने मिले है जख्म कि नासूर हो गए 
इतना मिला है दर्द कि मजबूर हो गए 
इतने लगाये दाग वफाओं के नाम पर 
हम बेवफा के नाम से मशहूर हो गए 
रोहित कुमार "मीत"

रुलाके मुझको बहुत वो भी तो रोया होगा

रुलाके मुझको बहुत वो भी तो रोया होगा 
मेरी तरहा ही मेरा यार न सोया होगा 
प्यार की आंच से ये "मीत" सुखायेंगे उसे 
उसने अश्को से अगर तकिया भिगोया होगा 
रोहित कुमार "मीत"

रविवार, 23 जनवरी 2011

आईने से निगाहें हटा लीजिये

सबकी नज़रों से खुद को बचा लीजिये 
एक तिल अपने रुख पर लगा लीजिये


लग ना,जाये कही तुमको अपनी नज़र

आईने  से   निगाहें   हटा    लीजिये 

ये  बहकती   निगाहें  ठहर   जायेंगी 
ख्वाब  आँखों मे  कोंई  सजा लीजिये


हंसके  कट  जायेगा  प्यार का  रास्ता
हमसफ़र मुझको अपना बना लीजिये

रौशनी  को   कोंई   रास्ता    चाहिए 
आप  चेहरे  से  परदा  उठा   लीजिये 

बेकरारी  मे  भी  चैन  मिल  जायेगा
"मीत" को मीत अपना बना लीजिये
                        
                     रोहित कुमार "मीत"

सोमवार, 17 जनवरी 2011

उम्र से अपनी बड़ी ये बच्चियाँ दिखने लगीं

ढल रही है उम्र तो सब हड्डियाँ  दिखने लगीं
वक़्त के चेहरे पे कितनी झुरियाँ दिखने लगीं

जाने इनके सामने थी कौन सी मजबूरियाँ 
उम्र से अपनी बड़ी ये बच्चियाँ दिखने लगीं

मुझको यू  गम के सफ़र मै मुस्कुराता देखकर 
सबकी आँखों मैं अजब हैरानियाँ दिखने लगीं
  
इस खिज़ा कि रुत मे आखिर कौन सा गुल खिल गया 
ये कहाँ से फिर चमन मैं तितलियाँ दिखने लगीं


बात दिल की उस से  कह दी "मीत" अपना मानकर 
उसके चेहरें पर मगर  मजबूरियाँ दिखने लगीं

                                                   रोहित कुमार "मीत"

रविवार, 2 जनवरी 2011

माँ का आँचल

उन आँखों का काजल बहुत याद आया
वो आवारा सा बादल बहुत याद आया

सफ़र  धूप  मे   मैंने   जब  भी  किया
मुझे माँ का आँचल बहुत याद आया

मै  बस्ती से  गुजरा हूँ जब  भी  कभी
तो मुझको वो जंगल बहुत याद आया

कभी   साथ   हमने  गुजरा   था  जो
वो गुजरा हुआ  पल बहुत याद आया

बहुत   शोहरते   दी   मुझे   आज   ने
मगर"मीत" वो कल बहुत याद आया
                  
                 रोहित कुमार "मीत"