फिक्र मुझको नहीं जमाने की
मेरी आदत है मुस्कुराने की
एक दिन मेरी जान जाएगी
उनको आदत है आजमाने की
मेरी तो आदत है मनाने की
उनकी फितरत है रूठ जाने की
तेरे चेहरे ने कह दिया सबकुछ
कुछ जरुरत नहीं बताने की
"मीत" उतना ही याद आये है
कोशिशे जितना की भुलाने की
रोहित कुमार "मीत"
रविवार, 26 दिसंबर 2010
सोमवार, 20 दिसंबर 2010
दरिया से मिलके हमने समंदर की बात की
दरिया से मिलके हमने समंदर की बात की
यानि की अपने आप के अन्दर की बात की
हारा था कौन,जंग का मतलब था क्या भला
पोरस से मिलके हमने सिकंदर की बात की
हर शख्स अपने जख्म दिखाने लगा मुझे
महफ़िल मे जब भी सितमगर की बात की
उनकी जुबां पे "मीत" का भी नाम आ गया
उनसे किसी ने जब भी सुखनवर की बात की
रोहित कुमार "मीत"
यानि की अपने आप के अन्दर की बात की
हारा था कौन,जंग का मतलब था क्या भला
पोरस से मिलके हमने सिकंदर की बात की
हर शख्स अपने जख्म दिखाने लगा मुझे
महफ़िल मे जब भी सितमगर की बात की
उनकी जुबां पे "मीत" का भी नाम आ गया
उनसे किसी ने जब भी सुखनवर की बात की
रोहित कुमार "मीत"
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