गुरुवार, 6 सितंबर 2012

कोंई भी शै आसमानी अब हमें अच्छी नहीं लगती



किसी   की   हुक्मरानी   अब  हमें अच्छी नहीं लगती
गुलामी   की  कहानी   अब  हमें  अच्छी  नहीं  लगती

हमारा  दिल  बहल जाता है इन कागज के फूलों  से
महकती    रातरानी  अब   हमें   अच्छी  नहीं   लगती

ये  सूरज  चाँद,  तारे  ,कहकशां,  बिजली, धनक, बादल
कोई   शै   आसमानी  अब   हमें  अच्छी नहीं  लगती

बनाकर    दूरियाँ     रखना   हमेशा   छोटे  लोगों    से
अना  ये   खानदानी  अब  हमें  अच्छी  नहीं    लगती

जो दिल में  है  तिरे होठोँ  पे  आ  जाए तो बेहतर है
मुसलसल  बेजुबानी   अब  हमें  अच्छी  नहीं  लगती

                                               रोहित कुमार  "मीत "

गुरुवार, 23 अगस्त 2012

सारे बदन का ख़ून नज़र में उतर गया

आँखों से मिरी कौन सा मंज़र गुजर गया 
सारे बदन का ख़ून नज़र  में   उतर  गया 

मै डिगरियों के साथ भटकता रहा मगर 
आख़िर तो ख़ाली  हाथ ही बस अपने घर गया 

ये जानकर भी दिल को तसल्ली हुई बहुत 
मै हो गया तबाह मगर वो सँवर गया 

हैरत की कोई बात तो इसमें नहीं जनाब 
वो आइना-ए-दिल मिरा टूटा,बिखर गया 

फिर आ गया था याद मुझे हादसा कोई 
फिर "मीत" अपने आप से मै आज डर गया 

रोहित कुमार "मीत"