घर नही पर घर का नक्सा बनाते रहे
हकीकत को अपनी किस्सा बनाते रहे
जमी ही मिली ओढ़ने को उन्हें भी
फलक पे जो अपना आशिया बनाते रहे
कुछ लोग चाँद पे जाके लोट भी आए
हम घर तक जाने का रास्ता बनाते रहे
हकीकत हो या कोई हो ख्वाब "मीत"
फ़िर भी अंजान एक रिश्ता बनाते रहे