मंगलवार, 17 नवंबर 2009

उदास परिंदे .



दरख्त कट जाने से परिंदे उदास बैठे है

चोकते है आहट पे क्यों बदहवास बैठे है


मुफलिसी ने तो हया का कर लिया परदा

मशरिकी तो सभी यहाँ बेलिबास बैठे है


राह-ऐ-उल्फत मे हमने रूह फ़ना कर दी

एक वो लिए जख्मो का भी हिसाब बैठे है


रौशनी ना सही मेरे मुकद्दर मे तो क्या ?

हम तो पहलू मे लिए आफ़ताब बैठे है


मैंने सोचा वो भूल गया कल की बाते को

मगर वो लिए बचपन की किताब बैठे है

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें