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"MEET" SHAYRIE'S
मंगलवार, 17 नवंबर 2009
मुझे महजबी अपना गुलाम कर दे
बिखरा के जुल्फे फ़िर शाम कर दे
कुछ हसी पल आज मेरे नाम कर दे
मुद्दत से बहता है ये दरिया बनकर
अपने होठो से छूकर इसे जाम कर दे
अब तलक छुपा रखा है जो हिजाब मे
उठाकर परदा जलवा- ऐ-आम कर दे
कैद कर जलवा-ऐ-हुस्न की जंजीर से
मुझे भी महजबी अपना गुलाम कर दे
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नासूर हो गय
मायुसिओं से घिर गया हूँसबकी नज़र से गिर गया हूँहिज्...
आईना कर दे
उदास परिंदे .
मुझे महजबी अपना गुलाम कर दे
हर चीज कारोबारी
तेज रफ्तार है जिन्दगी
सब सिकंदर हो गए
मुकद्दर से इन्किलाब
आदमी मे आदमीयत क्या बात है
रुलाकर मुझको वो भी रोया होगा
मगरूर ना होना
मेरे बारे में
Rohit "meet"
नादा था गिला करता रहा तन्हाइयो से अपनी दामन को छुड़ाता रहा मै रुसवाइयो से अपनी खुश था कड़ी धूप मै कोई हमराह है अपना "मीत" अक्सर फरेब खाता रहा मै परछाइयो से अपनी
मेरा पूरा प्रोफ़ाइल देखें
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