मंगलवार, 17 नवंबर 2009

मुझे महजबी अपना गुलाम कर दे


बिखरा के जुल्फे फ़िर शाम कर दे
कुछ हसी पल आज मेरे नाम कर दे

मुद्दत से बहता है ये दरिया बनकर
अपने होठो से छूकर इसे जाम कर दे

अब तलक छुपा रखा है जो हिजाब मे
उठाकर परदा जलवा- ऐ-आम कर दे

कैद कर जलवा-ऐ-हुस्न की जंजीर से
मुझे भी महजबी अपना गुलाम कर दे

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