फिक्र मुझको नहीं जमाने की
मेरी आदत है मुस्कुराने की
एक दिन मेरी जान जाएगी
उनको आदत है आजमाने की
मेरी तो आदत है मनाने की
उनकी फितरत है रूठ जाने की
तेरे चेहरे ने कह दिया सबकुछ
कुछ जरुरत नहीं बताने की
"मीत" उतना ही याद आये है
कोशिशे जितना की भुलाने की
रोहित कुमार "मीत"
रविवार, 26 दिसंबर 2010
सोमवार, 20 दिसंबर 2010
दरिया से मिलके हमने समंदर की बात की
दरिया से मिलके हमने समंदर की बात की
यानि की अपने आप के अन्दर की बात की
हारा था कौन,जंग का मतलब था क्या भला
पोरस से मिलके हमने सिकंदर की बात की
हर शख्स अपने जख्म दिखाने लगा मुझे
महफ़िल मे जब भी सितमगर की बात की
उनकी जुबां पे "मीत" का भी नाम आ गया
उनसे किसी ने जब भी सुखनवर की बात की
रोहित कुमार "मीत"
यानि की अपने आप के अन्दर की बात की
हारा था कौन,जंग का मतलब था क्या भला
पोरस से मिलके हमने सिकंदर की बात की
हर शख्स अपने जख्म दिखाने लगा मुझे
महफ़िल मे जब भी सितमगर की बात की
उनकी जुबां पे "मीत" का भी नाम आ गया
उनसे किसी ने जब भी सुखनवर की बात की
रोहित कुमार "मीत"
शनिवार, 30 अक्तूबर 2010
लग ना जाये कही तुमको अपनी नज़र
सबकी नज़रो से खुद को बचा लीजिये
एक काला तिल रुख पर लगा लीजिये
लग ना जाये कही तुमको अपनी नज़र
आईने से निगाहें हटा लीजिये
खुद पे भी आपको प्यार आ जायेगा
ख्वाब आँखों मे कोंई सजा लीजिये
हंसके कट जायेगा प्यार का रास्ता
हमसफ़र मुझको अपना बना लीजिये
बेकरारी मे भी चैन मिल जायेगा
"मीत" को अपने दिल से लगा लीजिये
रोहित कुमार "मीत"
रविवार, 24 अक्तूबर 2010
खुशबू आने लगी मिटटी के मकान से
छत पे बैठ कर अपने मकान के
तारे गिना करता हूँ आसमान के
घर मे नन्हे-मुन्ने फूल क्या खिले
खुशबू आने लगी मिटटी के मकान से
रोहित कुमार "मीत"
तारे गिना करता हूँ आसमान के
घर मे नन्हे-मुन्ने फूल क्या खिले
खुशबू आने लगी मिटटी के मकान से
रोहित कुमार "मीत"
शनिवार, 2 अक्तूबर 2010
ठोकरों मे रखते है ताज-ओ-तख़्त
हर-एक चेहरा मेरा पढ़ा हुआ है
चेहरे पे चेहरा यहाँ मढ़ा हुआ है
सच की कलम थी हाथो मे जिसके
बन के लाश चोराहे पे पड़ा हुआ है
झूठ सच पर इस क़दर भरी कि
कातिल भी नज़र मे पारसा हुआ है
क्या बात है खैरियत तो जनाब?
रंग चेहरे का क्यों उड़ा हुआ है ?
ठोकरों मे रखते है ताज-ओ-तख़्त
"मीत" इन से क्या कोंई बड़ा हुआ है
रोहित कुमार "मीत"
meet dohawali
बन बन मैँ फिरता रहूँ
धर के भेस फकीर
सपने मेँ जबसे मिले
मुझको दास कबीर।
मेरा तखल्लुस 'मीत' है
लिखूँ गज़ल हर शाम
आदमियत कायम रहे
दूँ सबको पैगाम।
मंजिल पानी हो तुझे
तो रख मन मेँ धीर
निश्चय ही हो जाएगी
ख्वाबोँ की ताबीर।
मन मेँ रखकर हौसला
बढ़ो मुश्किलेँ चीर
योगी बन तू कर्म का
झुक जाए तकदीर।
रंग बिरंगी रोशनी
देती रहे फरेब
गुरु का आईना मिला
दिखलाए सब ऐब।
शोहरत शिखर चढ़ो मगर
सदा रहे यह ध्यान
कुछ पल की हैँ रौनकेँ
मत करना अभिमान।
बेकल नीरज ने दिया
मुझको ऐसा ग्यान
स्वजन विमुख ना होँ कभी
रखना इसका ध्यान।
धर के भेस फकीर
सपने मेँ जबसे मिले
मुझको दास कबीर।
मेरा तखल्लुस 'मीत' है
लिखूँ गज़ल हर शाम
आदमियत कायम रहे
दूँ सबको पैगाम।
मंजिल पानी हो तुझे
तो रख मन मेँ धीर
निश्चय ही हो जाएगी
ख्वाबोँ की ताबीर।
मन मेँ रखकर हौसला
बढ़ो मुश्किलेँ चीर
योगी बन तू कर्म का
झुक जाए तकदीर।
रंग बिरंगी रोशनी
देती रहे फरेब
गुरु का आईना मिला
दिखलाए सब ऐब।
शोहरत शिखर चढ़ो मगर
सदा रहे यह ध्यान
कुछ पल की हैँ रौनकेँ
मत करना अभिमान।
बेकल नीरज ने दिया
मुझको ऐसा ग्यान
स्वजन विमुख ना होँ कभी
रखना इसका ध्यान।
मंगलवार, 10 अगस्त 2010
मंदिर-मस्जिद छोड़ के बने ऐसा मकान
मंदिर-मस्जिद छोड़ के बने ऐसा मकान
जाति-धर्म ना हो जहाँ सिर्फ रहे इंसान
रोहित कुमार "मीत"
जाति-धर्म ना हो जहाँ सिर्फ रहे इंसान
रोहित कुमार "मीत"
गुरुवार, 10 जून 2010
और दिल को थाम लिया
उसने जब कभी महफ़िल मे कोंई भी नाम लिया
जाने क्यों चुभन हुयी,और दिल को थाम लिया
उसकी जफ़ाओ को भी हमने वफा समझ करके
अपनी बरबादी का खुद पे "मीत" इल्जाम लिया
रोहित कुमार "मीत"
जाने क्यों चुभन हुयी,और दिल को थाम लिया
उसकी जफ़ाओ को भी हमने वफा समझ करके
अपनी बरबादी का खुद पे "मीत" इल्जाम लिया
रोहित कुमार "मीत"
शुक्रवार, 7 मई 2010
चूमकर मेरे बालो को सहलाता कौन है
चूमकर मेरे बालो को सहलाता कौन है
मेरे हर गम मे मुझको बहलाता कौन है
शिद्दत और तड़प के फूल चढ़ाकर "मीत"
आसुवो से मेरे कब्र को नहलाता कौन है
रोहित कुमार "मीत"
मेरे हर गम मे मुझको बहलाता कौन है
शिद्दत और तड़प के फूल चढ़ाकर "मीत"
आसुवो से मेरे कब्र को नहलाता कौन है
रोहित कुमार "मीत"
रविवार, 7 फ़रवरी 2010
जारी है एक सफ़र मेरा
जारी है एक सफ़र मेरा तीरगी के साथ
जंग चल रही है मेरी रौशनी के साथ
मुझे मालूम नहीं कि क्या सोच कर
मै खुद भी रो दिया बेबसी के साथ
ताज़ा हुए है जख्म मेरे फिक्र कीजिये
जब से मिला वो मुझे बेरुखी के साथ
पैमाने मै तुझको यू उदास देखकर
मैकदे से घर गया तिशनगी के साथ
होसलो तुम भी मेरे संग- संग चलो
जंग चल रही है मेरी जिंदगी के साथ
तीरगी/ अँधेरा
तिशनगी / प्यास
मंगलवार, 2 फ़रवरी 2010
दिल को मिला सुकून उसने भुला दिया
दिल को मिला सुकून उसने भुला दिया
ये बात और है कि मुझको रुला दिया
इस शहर मे कोई मुझे जानता ना था
फिर किसने रुसवाई को मेरा पता दिया
पास तेरा एक ख़त था निशानी के तौर
मगर आज तो हमने उसे भी जला दिया
चाक जिगर और आँखों मे मेरे अश्क
उसने मेरी वफ़ा का कुछ तो सिला दिया
टूट के बिखर-बिखर गए है यादो के पत्ते
किसने माजी के दरख्तों को हिला दिया
रो देते है बात- बात मे हँसते हुए भी हम
"मीत" इश्क ने तेरे क्या-क्या सिखा दिया
रोहित कुमार "मीत"
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