शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

ठोकरों मे रखते है ताज-ओ-तख़्त

हर-एक चेहरा मेरा  पढ़ा हुआ है 
चेहरे पे चेहरा यहाँ  मढ़ा हुआ है 

सच की कलम थी हाथो मे जिसके 
बन के लाश चोराहे  पे पड़ा हुआ है 

झूठ सच पर इस क़दर भरी कि
कातिल भी नज़र मे पारसा हुआ है 

क्या बात है खैरियत  तो जनाब?
रंग चेहरे का क्यों उड़ा हुआ है ?

ठोकरों मे रखते है  ताज-ओ-तख़्त 
"मीत" इन से क्या कोंई बड़ा हुआ है 

                     रोहित कुमार "मीत"


 

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